जिंदगी

 




कि कहती हैं मुझे जिंदगी के मैं आदतें बदल लूँ,

बहुत चला मैं लोगों के पीछे अब थोड़ा खुद के साथ चलूँ कहती हैं।

कि कहती हैं मुझे जिंदगी मैं जब भी लोगो के पीछे चला मैं तब खुद

 को भुल गया अब खुद को पाने के लिए थोडा खुद के साथ चलूँ।




गिरी हूँ मगर हारी नहीं हूँ मैं दुखी हूँ मगर बेचारी नहीं हूँ मैं गिर गिर

 कर संभलना है मुझको अपने हालातो से लड़ना आता है मुझको हाँ

 ये सच है मैं थोडी डरी हूँ मैं पर जिंदा हूँ मरी नहीं हूँ मैं,मुझे तुफानो

 से भी लड़ना आता है मुझको बुझी हुई उम्मीद को भी जलाना

 आता है मुझको हाँ अभी अंधेरा है कल सवेरा होगा आज तेरा है

 कल मेरा होगा रूढे हुए सपनो को मनाना आता है मुझको मरके भी

 जीना वापस आता है मुझको गिरी हु मगर हारी नहीं हूँ दुखी हुँ मगर

 बेचारी नहीं हूँ।

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