मर्द क्यों रोए नहीं
मर्द क्यों रोए नहीं मर्द क्यों रोए नहीं मर्द को भी रोना आता है लेकिन मर्द किसी के सामने अगर रोता है तो समाज यह कह कर चुप करा देता है कि मर्द होकर लड़कियो कि तरह रोता है हर जीव हर प्राणी जो सांस लेता है सबको रोना आता है हर जीव प्राणी के अंदर भावनाएं होती है लेकिन न जाने समाज क्यों मर्द को रोकर मन का भोज हल्का करने नहीं देता है जो भी मर्द को कहते है कि लडकियों कि तरह क्यों रो रहा है शायद उन्हें ये नहीं पता रो लेने से मर्द का मन भोज हल्का हो जाता है जब मन हल्का होगा तभी अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभा पाएगा फिर चाहे मर्द हो या लड़की एक लड़की भी तभी जिम्मेदारी निभा पाती है तब वह रोकर अपना मन हल्का कर लेती है वरना खाना पकाने वक्त कभी खाने में मिर्ची ज्यादा कभी कम कभी खाना जल जाता कभी कुछ दिक्कते आती है। मर्द को भी कह है रोने का हर इंसान हर प्राणी को रोने का हक है फिर भी न जाने ये समाज क्यों मर्द को क्यों खुलकर रोने नहीं देता है क्यों मन का भोज हल्का नहीं करने देता है मर्द क्यों न रोए । Nikita garg